Types Of Emergency In हिंदी – आपातकाल कितने प्रकार का होता है?
Contents
- 1 Emergency In India – आपातकाल
- 2 Types Of Emergency in हिंदी – आपातकाल के प्रकार
- 2.1 National Emergency – राष्ट्रीय आपातकाल
- 2.2 State Emergency – राष्ट्रपति शासन
- 2.3 Financial Emergency – वित्तीय आपातकाल
- 2.4 भारत में आपातकाल के प्रकार (Types of Emergency in India)
- 2.5 राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency) – अनुच्छेद 352
- 2.6 राष्ट्रपति शासन (State Emergency) – अनुच्छेद 356
- 2.7 वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency) – अनुच्छेद 360
- 2.8 निष्कर्ष
Emergency In India – आपातकाल
जब देश को किसी आंतरिक, बाहरी या आर्थिक रूप से किसी तरह के खतरे की आशंका होती है तो भारतीय संविधान में आपातकाल का प्रावधान किया गया है|
भारतीय संविधान राष्ट्रपति को तीन प्रकार के आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार देता है:
- राष्ट्रीय आपातकाल
- राज्य आपातकाल और
- वित्तीय आपातकाल।
भारत में आपातकालीन प्रावधानों को जर्मनी के वीमर (weimar) संविधान से लिया गया है।
भारत के इतिहास में ऐसे अवसर आए हैं जिनमें देश या किसी भी राज्य को आपातकाल अपनाना पड़ा। 60 के दशक में भारत-चीन युद्ध और 70 के दशक में भारत-पाकिस्तान युद्ध ने राष्ट्रीय स्तर पर आपातकाल की स्थिति देखी।
Types Of Emergency in हिंदी – आपातकाल के प्रकार
भारत का संविधान निम्नलिखित तीन प्रकार के आपातकाल का वर्णन करता है:
- अनुच्छेद 352- राष्ट्रीय आपातकाल
- अनुच्छेद 356-आपातकाल राज्य में (राष्ट्रपति शासन)
- अनुच्छेद 360- वित्तीय आपातकाल
National Emergency – राष्ट्रीय आपातकाल
अनुच्छेद 352 के तहत, यदि राष्ट्रपति को लगता है कि स्थिति गंभीर है, जिसमें युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह आदि से देश की सुरक्षा को खतरा है, तो वह उस स्थिति में आपातकाल की घोषणा कर सकतें है।
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के आधिकारिक अनुरोध के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करता है। अगर एक महीने के भीतर संसद द्वारा आपातकाल को approve नहीं किया जाता है तो आपातकाल की स्थिति एक महीने के बाद समाप्त हो जाती है।
अनुच्छेद 352 (6) के अनुसार, आपातकाल को मंजूरी देने के लिए दोनों सदनों के बहुमत की आवश्यकता होती है। हर छह महीने में प्रस्तावों को पारित करके आपातकालीन अवधि को अनिश्चित काल तक बढ़ाया जा सकता है।
राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान, कई मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया जाता है।
1975 और 1977 के बीच 21 महीने की अवधि को भारतीय लोकतंत्र के सबसे काले दिनों में से एक माना जाता है, जब देश भर में आपातकाल लागू कर दिया गया था।
State Emergency – राष्ट्रपति शासन
संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार किसी राज्य में राजनीतिक संकट को देखते हुए संबंधित राज्य में राष्ट्रपति आपात स्थिति का ऐलान कर सकते हैं|
राज्य के प्रशासन को चलाने की शक्ति मुख्यमंत्री से राज्यपाल के पास चली जाती है। वह राष्ट्रपति के नाम पर राज्य का प्रशासन करता है। State Emergency को राष्ट्रपति शासन के रूप में भी जाना जाता है|
प्रारंभ में, ऐसा आपातकाल छह महीने के लिए लगाया जाता है और इसे तीन वर्षों तक के लिए बढ़ाया जा सकता है। जम्मू और कश्मीर और पंजाब जैसे राज्यों में तीन साल से अधिक समय तक राज्य आपातकाल लागू किया गया था। इसके लिए संविधान संशोधन करना पड़ा था।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य आपातकाल लगाने के लिए सख्त दिशा-निर्देश स्थापित करके अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग की गुंजाइश कम कर दी है। साल 2000 की शुरुआत से, राष्ट्रपति शासन लगाने की घटनाएं काफी हद तक कम हो गई हैं।
सरकारिया आयोग ने कहा है कि अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल “बहुत ही कम” और “गंभीर मामलों में” किया जाना चाहिए|
Financial Emergency – वित्तीय आपातकाल
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, जब राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाता है कि अर्थव्यवस्था कमजोर है और देश की वित्तीय स्थिरता खतरे में है।
संसद को दो महीने के भीतर वित्तीय आपातकाल को मंजूरी देनी होगी। राष्ट्रपति द्वारा निरस्त किए जाने तक ऐसा आपातकाल लागू रहता है।
वित्तीय आपातकाल के दौरान, राष्ट्रपति राज्य को कुछ आर्थिक उपायों को अपनाने के लिए निर्देश देते है।
वह सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों सहित सभी सरकारी अधिकारियों के वेतन को कम कर सकते है।
यह आपातकाल भारत में कभी नहीं लगाया गया है।
भारत में आपातकाल के प्रकार (Types of Emergency in India)
भारतीय संविधान में आपातकालीन प्रावधान (Emergency Provisions) का उल्लेख भाग XVIII (अनुच्छेद 352 से 360) में किया गया है। आपातकाल के दौरान सरकार को विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं, जिससे वह देश की सुरक्षा और अखंडता बनाए रख सकती है।
भारत में तीन प्रकार के आपातकाल होते हैं:
राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency) – अनुच्छेद 352
घोषणा: जब देश की सुरक्षा को बाहरी आक्रमण (External Aggression), आंतरिक विद्रोह (Internal Disturbance) या सशस्त्र विद्रोह (Armed Rebellion) से खतरा हो।
घोषित करने का अधिकार: राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सिफारिश पर।
अभी तक कितनी बार लागू हुआ?
-
1962: भारत-चीन युद्ध (बाहरी आक्रमण)
-
1971: भारत-पाक युद्ध (बाहरी आक्रमण)
-
1975: आंतरिक अशांति (इंदिरा गांधी सरकार)
प्रभाव: -
केंद्र सरकार को राज्यों पर पूर्ण नियंत्रण मिल जाता है।
-
मौलिक अधिकार निलंबित किए जा सकते हैं।
राष्ट्रपति शासन (State Emergency) – अनुच्छेद 356
घोषणा: जब किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाए और सरकार सुचारू रूप से कार्य न कर सके।
घोषित करने का अधिकार: राष्ट्रपति, राज्यपाल की रिपोर्ट पर या स्वयं के विवेक से।
अभी तक कितनी बार लागू हुआ? 100+ बार विभिन्न राज्यों में।
प्रभाव:
-
राज्य की विधानसभा निलंबित या भंग कर दी जाती है।
-
राज्य का शासन राष्ट्रपति के अधीन आ जाता है।
-
राज्यपाल को पूरा प्रशासनिक नियंत्रण मिल जाता है।
वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency) – अनुच्छेद 360
घोषणा: जब भारत की आर्थिक स्थिरता को गंभीर खतरा हो।
घोषित करने का अधिकार: राष्ट्रपति।
अब तक कितनी बार लागू हुआ? कभी नहीं।
प्रभाव:
-
केंद्र सरकार वेतन और खर्चों को कम कर सकती है।
-
राज्यों को केंद्र के आदेशों का पालन करना अनिवार्य होगा।
निष्कर्ष
आपातकालीन प्रावधान भारत को संकट के समय संविधानिक और राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने में मदद करते हैं। लेकिन इनका गलत इस्तेमाल लोकतंत्र के लिए खतरा बन सकता है, जैसा कि 1975 के आपातकाल में देखा गया था।
क्या आपको इससे जुड़े और टॉपिक्स चाहिए?