परिसीमन आयोग क्या है | Parisiman Ayog In Hindi
क्यों चर्चा में है?
अगस्त 2019 में भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर में धारा 370 के सभी प्रावधानों को निरस्त कर दिया था तथा जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शाषित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था| इसके बाद भारत सरकार ने चार पूर्वोत्तर राज्यों सहित जम्मू कश्मीर में परिसीमन आयोग के गठन की मंजूरी दे दी है|
अगर आप ये जानना चाहते हैं कि परिसीमन का क्या अर्थ है, parisiman ayog kya hai और भारत सरकार पूर्वोत्तर के चार राज्यों सहित जम्मू कश्मीर में क्यों परिसीमन को लागु करना चाहती है, तो आप इस आर्टिकल को ध्यान से पढ़िए। हम आपको परिसीमन आयोग के कार्य तथा उद्देश्य के बारे में भी बताएँगे।
परिसीमन आयोग क्या है, ये जानने से पहले आपको इसका अर्थ जानना चाहिए| इसका अर्थ है किसी राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिये, समय के साथ बढ़ती हुई जनसँख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना है।
Parisiman का काम एक उच्च निकाय को सौंपा जाता है। ऐसे निकाय को परिसीमन आयोग या सीमा आयोग के रूप में जाना जाता है।
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परिसीमन आयोग (delimitation commission) का इतिहास
अनुच्छेद 82 में प्रत्येक जनगणना की समाप्ति के बाद लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचन क्षेत्रों के विभाजन का कार्य संसद द्वारा विहित अधिकारी द्वारा किये जाने का प्रावधान है|
भारत में आज तक चार बार परिसीमन आयोग का गठन हो चुका है-
- पहले आयोग का गठन वर्ष 1952 में परिसीमन या सीमा आयोग अधिनियम 1952के अधीन किया गया था|
- दूसरे आयोग का गठन 1963 में सीमा आयोग अधिनियम, 1962 के अधीन किया गया था|
- तीसरे आयोग का गठन 1973 में सीमा आयोग अधिनियम 1972 के अधीन किया गया था|
- चौथे आयोग का गठन 2002 में सीमा आयोग अधिनियम 2002 के अधीन किया गया था|
सीमा आयोग 2002
सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में 12 जुलाई, 2002 में इस आयोग का गठन किया गया था| जिसको 19 फरवरी, 2008 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने लागु कर दिया था|
Delimitation Commission से जुड़े तथ्य
परिसीमन आयोग भारत में एक उच्चाधिकार निकाय है जिसके आदेशों को कानून की तरह ही लागू किया जाता है और इन्हे किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
जब परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो आयोग के आदेशों की प्रतियां सम्बंधित लोक सभा और राज्य विधानसभा के सदन के समक्ष रखी जाती हैं लेकिन उनमें उनके द्वारा कोई संशोधन करने की अनुमति नहीं होती है।
भारत में parisiman aayog का गठन सर्वप्रथम 1952 में किया गया था| एवं आखिरी बार इसका गठन 2002 में किया गया था|
Delimitation के कार्य तथा उद्देश्य
- देश के विभिन्न हिस्सों में जनसँख्या सामान नहीं होती. परिसीमन का उद्देश्य है समय के साथ जनसँख्या में हुए बदलाव के बावजूद समान जनसख्या का विधान सभा या लोकसभा में सामान प्रतिनिधित्व हो.
- परिसीमन से किसी भी राज्य के प्रतिनिधियों की संख्या नहीं बदली जाती है.
- इस की प्रक्रिया के तहत ही अनुसूचित वर्ग के लोगों के लिया आरक्षित सीटों का प्रावधान किया गया है.
परिसीमन आयोग के अध्यक्ष
इस आयोग की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत न्यायाधीश करते हैं। इनके अतिरिक्त देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त सहित सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन आयुक्त इस आयोग के सदस्य होतें है|
परिसीमन आयोग 2020 का अध्यक्ष कौन है?
परिसीमन आयोग की अध्यक्ष न्यायमूर्ति रंजना देसाई हैं|
प्रत्येक जनगणना के बाद निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का सीमांकन कौन करता है?
संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत, कानून द्वारा संसद हर जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम लागू करती है। अधिनियम के लागू होने के बाद, केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग का गठन करती है।
सीमांकन और परिसीमन के बीच क्या अंतर है?
सीमा परिसीमन तब होता है जब दो पक्ष या सरकारें एक सामान्य सीमा पर सहमत होती हैं।
सीमा सीमांकन तब होता है जब सहमति-सीमा को भौतिक रूप से पत्थरों, स्तंभों, सड़कों, नदियों, आदि के उपयोग के स्थापित किया जाता है।
परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) क्या है?
परिसीमन आयोग एक संवैधानिक निकाय है जिसे संसदीय और राज्य विधानमंडलों की सीटों के पुनर्निर्धारण (सीमा निर्धारण) के लिए स्थापित किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को तय करना और उन्हें पुनर्गठित करना है।
परिसीमन का अर्थ
“परिसीमन” का मतलब किसी क्षेत्र की सीमाओं का पुनर्निर्धारण करना होता है, खासकर चुनावी क्षेत्रों के संदर्भ में। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में लगभग समान संख्या में मतदाता हों, जिससे लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व अधिक संतुलित हो।
परिसीमन आयोग की स्थापना और प्रावधान
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परिसीमन आयोग की स्थापना भारत के संविधान के अनुच्छेद 82 और 170 के तहत की जाती है।
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इसे संसद द्वारा पारित परिसीमन आयोग अधिनियम (Delimitation Commission Act) के माध्यम से गठित किया जाता है।
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यह एक स्वतंत्र और निष्पक्ष निकाय होता है, जिसकी सिफारिशें अंतिम और बाध्यकारी होती हैं।
परिसीमन आयोग का गठन
आयोग में निम्नलिखित सदस्य होते हैं:
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भारत के सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश (अध्यक्ष)
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भारत के चुनाव आयोग का सदस्य
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संबंधित राज्य के चुनाव आयुक्त
मुख्य कार्य और उद्देश्य
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लोकसभा और विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को पुनः निर्धारित करना।
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प्रत्येक क्षेत्र में समान संख्या में मतदाताओं का संतुलन बनाए रखना।
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अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित सीटों को चिह्नित करना।
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जनगणना के अनुसार नई जनसंख्या वृद्धि को ध्यान में रखते हुए सीटों का पुनर्गठन करना।
भारत में परिसीमन आयोग की समय-सीमा
अब तक भारत में चार परिसीमन आयोग बनाए गए हैं:
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1952 (पहली जनगणना के बाद)
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1963 (1961 की जनगणना के बाद)
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1973 (1971 की जनगणना के बाद)
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2002 (2001 की जनगणना के बाद)
वर्तमान में, 2026 तक परिसीमन की प्रक्रिया को स्थगित कर दिया गया है।
परिसीमन आयोग का महत्व
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लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व में संतुलन लाता है।
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राजनीतिक असमानता को कम करता है।
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निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों को सुनिश्चित करता है।
निष्कर्ष
परिसीमन आयोग एक महत्वपूर्ण निकाय है जो जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का संतुलन बनाए रखने का कार्य करता है। यह लोकतंत्र को मजबूत बनाने और जनता के उचित प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने में सहायक है।