प्राचीन भारत के सोलह महाजनपद और उनकी राजधानी | 16 Mahajanapadas In Hindi
जिस वक़्त यूरोप और अमेरिका के लोग जंगली और असभ्य थे, तब भारतीय उपमहाद्वीप के सिंधु घाटी और हड़प्पा जैसी उन्नत सभ्यताएं फल-फूल रही थीं| आज हम प्राचीन भारत के 16 महाजनपद (16 Mahajanapadas) और उनकी राजधानियों के बारे में जानेंगे|
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16 Mahajanapadas in Hindi
भगवान बुद्ध के जन्म के पहले छठी शताब्दी में भारत 16 महाजनपदों में बंटा था| इन महाजनपदों का उल्लेख बौद्ध ग्रन्थ ‘अंगुत्तर निकाय’ और जैन ग्रन्थ ‘भगवती सूत्र’ में मिलता है|
16 Mahajanapadas List
महाजनपद | राजधानी | क्षेत्र |
अंग | चंपा | भागलपुर, मुंगेर |
मगध | गिरीव्रज/ राजगृह | पटना एवं गया |
काशी | वाराणसी | वाराणसी के आसपास का क्षेत्र |
कोशल | साकेत एवं श्रावस्ती | पूर्वी उत्तर प्रदेश |
वज्जि | वैशाली | मुजफ्फरपुर के आसपास |
मल्ल | कोशीनारा/पावा | देवरिया एवं गोरखपुर के आस पास |
चेदि | सूक्ति मती | बुंदेलखंड |
वत्स | कौशांबी | |
कुरु | इंद्रप्रस्थ | मेरठ तथा हरियाणा के क्षेत्र |
पांचाल | अहिच्छत्र, काम्पिल्य | आधुनिक पश्चिम उत्तर प्रदेश |
सूरसेन | मथुरा | मथुरा के आसपास |
गांधार | तक्षशिला | पेशावर और कश्मीर |
कम्बोज | राजपुरा | उत्तर प्रदेश सीमा प्रांत |
आस्मक ( दक्षिण भारत का एकमात्र महाजनपद) | पोतन या पोटिल | गोदावरी नदी क्षेत्र |
अवंती | उज्जयिनी या महिष्मति | मालवा और मध्य प्रदेश |
मत्स्य | विराट नगर | जयपुर के आसपास |
16 महाजनपदों की विशेषताएं | Characteristics of 16 Mahajanapadas
- 16 Mahajanpadas में कंबोज राज्य अच्छे घोड़ों के लिए काफी प्रसिद्ध था।
- चंपा राज्य का पुराना नाम मालिनी था।
- वज्जि संघ 8 कुलों का एक संघ था।
- पांचाल को वैदिक सभ्यता का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि कहा गया है।
- रामायण से पता चलता है कि तक्षशिला की स्थापना भरत के पुत्र तक्ष ने की थी।
- गौतम बुद्ध के समय अवंति का राजा प्रद्योत था।
- बुद्ध के समय कोशल देश का राजा प्रसेनजित था।
- मगध का राजा बिंबिसार गौतम बुध का मित्र और संरक्षक था।
- बुद्ध कालीन सर्वाधिक बड़ा एवं शक्तिशाली गणतंत्र वैशाली का लिच्छवी गणतंत्र था।
- बुद्ध के समय चार शक्तिशाली राजतन्त्र कोशल, मगध, वत्स और अवंती थे।
- गांधार एवं कंबोज के क्षत्रियों को वार्ताशास्त्रेयजीविनः कहा गया है।
- उत्तरापथ मार्ग- उत्तर पश्चिम में पुष्कलावती तक्षशिला से पाटलिपुत्र और ताम्रलिप्ति तक जाता है।
- दूसरा प्रमुख व्यापारिक मार्ग पश्चिम में पाटन से पूर्व में कौशांबी तक जाता था। उसके बाद यह उत्तरापथ मार्ग से जुड़ जाता था।
- तीसरा व्यापारिक मार्ग दक्षिण में प्रतिष्ठान से उत्तर में श्रावस्ती की ओर जाता था ।
- चतुर्थ मार्ग भृगुकच्छ से मथुरा तक उज्जयिनी होकर जाता था।
- तीसरा मार्ग जो प्रतिष्ठान से श्रावस्ती जाता था, बहुत ही महत्वपूर्ण था। इस व्यापारिक मार्ग पर व्यापार की बहुमूल्य वस्तुओं जैसे- मुक्ता, मणि, हीरा, सोना, शंख आदि के कारवां चलते थे।
- पूर्वी तट पर ताम्रलिपि एवं पश्चिमी तट पर भृगुकच्छ महत्वपूर्ण बंदरगाह थे।