What Is Inflation In Hindi: मुद्रास्फीति के प्रकार कितने है?
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index) 2.86% से बढ़कर अप्रैल 2020 में 2.92% पर पहुंच गया है| जो की पिछले 6 महीनों में सबसे अधिक है| कई लोगों के मन में ये सवाल आता है कि मुद्रास्फीति क्या है (What is inflation) और मुद्रास्फीति के प्रकार कितने है? इसलिए आज हम इसके बारे में विस्तार से बात करेंगे|
Contents
- 1 मुद्रास्फीति क्या है: What is inflation in Hindi?
- 2 मुद्रास्फीति के चरण | Stages of Inflation
- 3 मुद्रास्फीति के प्रकार (Types of Inflation)
- 4 लागत जनित मुद्रास्फीति (Cost Pull Inflation)
- 5 माँग जनित मुद्रास्फीति (Demand Pull Inflation)
- 6 मुद्रास्फीति नियंत्रण के उपाय
- 7 भारत सरकार ने मुद्रास्फीति के नियंत्रण के लिए अनेक उपाय किये हैं-
मुद्रास्फीति क्या है: What is inflation in Hindi?
परिभाषा: मुद्रास्फीति एक सामान्य आर्थिक अवस्था है जो आम नागरिक के साथ-साथ व्यापारी वर्ग को भी प्रभावित करती है| जब वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में लगातार वृद्धि हो रही हो तो ऐसी अवस्था को मुद्रा स्फीति कहते है| मुद्रा स्फीति का मापन प्रतिशत में वार्षिक वृद्धि के रूप में किया जाता है|
मुद्रास्फीति बढ़ने पर रूपये की वस्तुओं और सेवाओं को ख़रीदने की क्षमता घट जाती है| रूपये का मूल्य क्रय शक्ति (Buying Power) की क्षमता के आधार पर मापा जाता है अतः मुद्रा स्फीति दौरान रूपये की वैल्यू घट जाती है|
उदाहरण के तौर पर यदि आज आपको एक बर्गर 100 रूपये में मिलता है| और मुद्रा स्फीति की दर 10% वार्षिक है तो 100 रूपये के बर्गर की कीमत एक साल बाद 110 रूपये हो जाएगी| इसका मतलब ये है की अब आपके 100 रूपये से बर्गर नहीं ख़रीदा जा सकता है| मुद्रास्फीति बढ़ने के बाद आपके रूपये से उतनी वस्तुएं नहीं खरीदी जा सकती हैं जितनी पहले खरीदी जा सकती थी|
मुद्रास्फीति के चरण | Stages of Inflation
लक्षण एवं तीव्रता के आधार पर मुद्रा स्फीति के कई चरण होते हैं-
- रेंगती हुई मुद्रास्फीति
- चलती हुई या दौड़ती हुई मुद्रास्फीति
- उछलती हुई मुद्रास्फीति
- अति मुद्रास्फीति
- जब वस्तुओं की कीमतें धीमी गति से बढ़ती है (2-4 %वार्षिक) तो इसे रेंगती हुई मुद्रास्फीति कहते है|
- मुद्रास्फीति की दर चलती और दौड़ती हुई मुद्रास्फीति के दौरान 5-10% होती है
- उछलती हुई मुद्रास्फीति के दौरान यह दर 10 से 20% तक हो जाती है|
- अति मुद्रास्फीति के दौरान यह दर 20% से भी अधिक हो जाती है| ऐसी स्थिति में मुद्रास्फीति को नियंत्रित कर पाना असंभव सा हो जाता है|
वर्तमान में जिम्बाब्वे अति मुद्रास्फीति का सामना कर रहा था| जिसकी वजह से वहां ट्रिलियन डॉलर के नोट भी छापे जा चुके हैं|
मुद्रास्फीति के प्रकार (Types of Inflation)
प्रमुख रूप से मुद्रास्फीति के दो प्रकार है –
लागत जनित मुद्रास्फीति (Cost Pull Inflation)
लागत जनित मुद्रास्फीति साधनों की लागतों या कीमतों में वृद्धि के कारण उत्पन्न होती है। परम्परागत आर्थिक सिद्धांत के अनुसार उत्पादन के तीन साधन भूमि, श्रम तथा पूंजी होते हैं| वर्तमान समय में उत्पादन के बहुत सारे साधन प्रयुक्त होते हैं, जैसे मकान-किराया, बिजली, कच्चा माल, तेल एवं स्टील इत्यादि।
इनमें से किसी साधन की कीमत में वृद्धि से उत्पादक वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, इस प्रक्रिया को लागत जनित मुद्रास्फीति या Cost Pull Inflation कहते हैं। उत्पादन लागत बढ़ने के कुछ महत्त्वपूर्ण कारक इस प्रकार हैं-
- उत्पादन एवं पूर्ति के उतार चढ़ाव।
- करों में वृद्धि , जिससे लागतें एवं कीमतें बढ़ जाती है।
- प्रशासनिक कीमतों में परिवर्तन।
- तेल की कीमतें में वृद्धि एवं वैश्विक मुद्रास्फीति।
माँग जनित मुद्रास्फीति (Demand Pull Inflation)
मांग जनित मुद्रास्फीति या Demand Pull Inflation के अन्तर्गत साधन की लागत एक समान रहती है जबकि उपभोक्ताओं द्वारा वस्तुओं या सेवाओं की मांग में सापेक्षिक वृद्धि होने से वस्तुओं या सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं।
इस स्थिति में मांग में तो वृद्धि हो जाती है, परन्तु आपूर्ति स्थिर होने कारण मुद्रास्फीति बढ़ जाती है।
मुद्रास्फीति के कारण – Reasons of Inflation
मांग प्रेरित मुद्रास्फीति तब होती है जब उपभोक्ता, बिज़नेस, या सरकार की मांग वस्तु एवं सेवाओं की आपूर्ति से अधिक हो जाती है| आपूर्ति को उत्पादन के साधनों में वृद्धि किये बिना नहीं बढ़ाया जा सकता है इसलिए मांग बढ़ते ही कीमतें बढ़ने लगती हैं|
मुद्रास्फीति के प्रभाव – Consequences of Inflation
मुद्रास्फीति अलग-अलग लोगों को अलग तरह से प्रभावित करती है-
- उत्पादक वर्ग जैसे उद्योगपति, किसान और व्यापारी को मुद्रास्फीति का लाभ होता है|
- बैंको को हानि और लोन लेने वालों को लाभ होता है|
- निश्चित आय वर्ग वालों को हानि होती है वही परिवर्तित आय वर्ग वालों को लाभ होता है|
- समाज में आर्थिक विषमताएं बढ़ जाती है| धनी लोग और धनी तथा निर्धन लोग और निर्धन होते चले जाते हैं|
- आयत में वृद्धि और निर्यात कमी आ जाती है|
यदि ऋणदाता सही मुद्रास्फीति का अनुमान न लगा पाए तो ऋणदाता को हानि तथा ऋणी को लाभ होता है| वही निश्चित आय वर्ग के लोग जैसे नौकरी या सेवानिवृत लोगो की क्रय क्षमता में तेजी से गिरावट आती है|
सार्वजनिक ऋणों में वृद्धि- मुद्रास्फीति के कारण सार्वजनिक ऋणों में वृद्धि हो जाती है क्योंकि जब कीमत स्तर में वृद्धि होती है तो सरकार को सार्वजनिक योजनाओं पर अपने व्यय को बढ़ाना पड़ता है इस व्यय की पूर्ति के लिए सरकार जनता से ऋण लेती है। अतः मुद्रास्फीति के कारण सार्वजनिक ऋणों में वृद्धि होती है|
करों में वृद्धि- मुद्रास्फीति के कारण सरकार के सार्वजनिक व्यय में बहुत वृद्धि होती है। सरकार अपने व्यय की पूर्ति के लिए नये-नये कर लगाती है तथा पुराने करों में वृद्धि करती है। इस प्रकार मुद्रास्फीति के कारण करों के भार में वृद्धि होती हे।
नैतिक प्रभाव– मुद्रास्फीति के कारण व्यापारी वर्ग लालच में अंधा हो जाता है और जमाखोरी, मुनाफाखोरी तथा मिलावट आदि का प्रयोग उत्पादन को बेचने में करते है। सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते है तथा व्यक्तियों में नैतिक मूल्यों का पतन होता है।
मुद्रास्फीति नियंत्रण के उपाय
भारत सरकार ने मुद्रास्फीति के नियंत्रण के लिए अनेक उपाय किये हैं-
- अनिवार्य वस्तुओं, खासकर दालों के मूल्य में अस्थिरता को नियंत्रित करने हेतु बजट में मूल्य स्थिरता कोष में बढ़ा हुआ आवंटन।
- बाज़ार में समुचित दखल हेतु 20 लाख टन दालों का ऑफर स्टॉक रखने का अनुमोदन।
- अनिवार्य वस्तु अधिनियम के अंतर्गत दालों, प्याज, खाद्य तेलों और खाद्य तेल के बीजों हेतु स्टॉक सीमा लागू करने के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को अधिकृत करना।
- उत्पादन को प्रोत्साहित कर खाद्य पदार्थों की उपलब्धता बढ़ाने हेतु ताकि मूल्यों में सुधार हो।
- उच्चतर मूल्य की घोषणा
- अगर मुद्रास्फीति पर नियंत्रण संभव न हो तो सरकार विमुद्रीकरण का भी सहारा ले सकती हैं। विमुद्रीकरण के अन्तर्गत सरकार पुरानी करेन्सी की जगह नई करेन्सी लेकर आती है। जिससे मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाया जा सकता है।
- उत्पादन में वृद्धि करके भी मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सकता है क्योंकि मुद्रास्फीति उस समय पैदा होती है जब कुल मांग कुल पूर्ति से ज्यादा हो जाता है। इस प्रकार हम कुल पूर्ति या उत्पादन को बढ़ाकर मुद्रास्फीति को नियात्रित कर सकते हैं।
मुद्रास्फीति (Inflation) का अर्थ:
मुद्रास्फीति का अर्थ किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में निरंतर वृद्धि होना है, जिससे मुद्रा की क्रय शक्ति (Purchasing Power) घट जाती है। सरल शब्दों में, जब आपको वही चीज़ खरीदने के लिए पहले से अधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं, तो इसे मुद्रास्फीति कहते हैं।
मुद्रास्फीति के कारण:
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मांग-पक्षीय मुद्रास्फीति (Demand-Pull Inflation) – जब बाजार में वस्तुओं और सेवाओं की मांग अधिक होती है, लेकिन आपूर्ति सीमित होती है।
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लागत-पक्षीय मुद्रास्फीति (Cost-Push Inflation) – जब उत्पादन लागत बढ़ने के कारण वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं।
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मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि (Increase in Money Supply) – जब बाजार में अधिक मात्रा में पैसा आ जाता है, तो उसकी कीमत घट जाती है और वस्तुएं महंगी हो जाती हैं।
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आयातित मुद्रास्फीति (Imported Inflation) – जब किसी देश में आयातित वस्तुएं महंगी हो जाती हैं, तो उनकी कीमतों में बढ़ोतरी होती है।
मुद्रास्फीति के प्रभाव:
सकारात्मक प्रभाव:
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आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिलता है।
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व्यापारियों और निवेशकों को लाभ होता है।
नकारात्मक प्रभाव:
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आम जनता की क्रय शक्ति कम हो जाती है।
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बचत पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
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ब्याज दरें बढ़ सकती हैं।
सरकार मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीति (Monetary Policy) और राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) का उपयोग करती है, जैसे कि ब्याज दरों में बदलाव और सरकारी खर्च को नियंत्रित करना।