Contents
- 1 Harivansh rai bachchan poems
- 2 #1. त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन
- 3 #2.नीड का निर्माण
- 4 #3.Aatm Parichay Poem In Hindi
- 5 #4.Agnipath Poem By Harivansh Rai Bachchan
- 6 #5.Path ki Pahchan Poem By Dr.Harivansh Rai Bachchan
- 7 #6.Jo Beet Gayi So Baat Gayi Poem
- 8 #7.चल मरदाने
- 9 #8.साथी सब कुछ सहना होगा
- 10 #9.संवेदना
- 11 #10.दिन जल्दी जल्दी ढलता है
- 12 #11.था तुम्हे मैंने रुलाया
- 13 #12.क्षण भर को क्यों प्यार किया था
- 14 #13.आज तुम मेरे लिए हो
- 15 #14.आ रही रवि की सवारी
- 16 #15.मधुशाला
- 17 Video of Harivansh rai bachchan poems
- 18 Conclusion
Harivansh rai bachchan poems
- तेरा हार ,
- मधुशाला ,
- मधुबाला ,
- मधुकलश ,
- आत्म परिचय ,
- निशा निमंत्रण ,
- एकांत संगीत ,
- आकुल अंतर ,
- सतरंगिनी ,
- हलाहल ,
- बंगाल का काल ,
- खादी के फूल ,
- सूत की माला ,
- मिलन यामिनी ,
- प्रणय पत्रिका ,
- धार के इधर-उधर ,
- आरती और अंगारे ,
- बुद्ध और नाचघर ,
- त्रिभंगिमा (1961),
- चार खेमे चौंसठ खूंटे ,
- दो चट्टानें ,
- बहुत दिन बीते ,
- कटती प्रतिमाओं की आवाज़ ,
- उभरते प्रतिमानों के रूप ,
- जाल समेटा,
- नई से नई-पुरानी से पुरानी
#1. त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन
त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन!जब रजनी के सूने क्षण में,तन-मन के एकाकीपन मेंकवि अपनी विव्हल वाणी से अपना व्याकुल मन बहलाता,त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन!
पंथी चलते-चलते थक कर,बैठ किसी पथ के पत्थर परजब अपने ही थकित करों से अपना विथकित पांव दबाता,त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन!
#2.नीड का निर्माण
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,नेह का आह्णान फिर-फिर!
रात-सा दिन हो गया, फिररात आई और काली,लग रहा था अब न होगाइस निशा का फिर सवेरा,
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,नेह का आह्णान फिर-फिर!
हाय, तिनकों से विनिर्मितघोंसलो पर क्या न बीती,डगमगाए जबकि कंकड़,ईंट, पत्थर के महल-घर;
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,नेह का आह्णान फिर-फिर!
एक चिड़िया चोंच में तिनकालिए जो जा रही है,वह सहज में ही पवनउंचास को नीचा दिखाती!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,नेह का आह्णान फिर-फिर!
#3.Aatm Parichay Poem In Hindi
मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,जग पूछ रहा है उनको, जो जग की गाते,मैं अपने मन का गान किया करता हूँ!
मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ;जग भ्ाव-सागर तरने को नाव बनाए,मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ!
कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?नादन वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भूलना!
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,हों जिसपर भूपों के प्रसाद निछावर,मैं उस खंडर का भाग लिए फिरता हूँ!
मैं दीवानों का एक वेश लिए फिरता हूँ,मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूँ;जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ!
#4.Agnipath Poem By Harivansh Rai Bachchan
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,एक पत्र छाँह भी,माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी,तू न रुकेगा कभी,तू न मुड़ेगा कभी,कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,चल रहा मनुष्य है,अश्रु श्वेत रक्त से,लथपथ लथपथ लथपथ,अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
#5.Path ki Pahchan Poem By Dr.Harivansh Rai Bachchan
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
पुस्तकों में है नहीछापी गई इसकी कहानीहाल इसका ज्ञात होताहै न औरों की ज़बानीअनगिनत राही गएइस राह से उनका पता क्यापर गए कुछ लोग इस परछोड पैरौं की निशानी
यह निशानी मूक होकरभी बहुत कुछ बोलती हैखोल इसका अर्थ पंथीपंथ का अनुमान कर ले।पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
अब असंभव छोड़ यह पथ
तू इसे अच्छा समझयात्रा सरल इससे बनेगीसोंच मत केवल तुझे हीयह पड़ा मन में बिठाना
तू इसी पर आज अपने
है अनिश्चित किस जगह परसरित गिरि गहवर मिलेंगेंहै अनिश्चित किस जगह परबाग बन सुंदर मिलेंगे।किस जगह यात्रा खतम होजाएगी यह भी अनिश्चितहै अनिश्चित कब सुमन कबकंटकों के शर मिलेंगेकौन सहसा छूट जाएँगेमिलेंगे कौन सहसाआ पड़े कुछ भी रुकेगातू न ऐसी आन कर ले।
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
#6.Jo Beet Gayi So Baat Gayi Poem
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में एक सितारा थामाना वह बेहद प्यारा थावह डूब गया तो डूब गया
जो छूट गए फिर कहाँ मिलेपर बोलो टूटे तारों परकब अम्बर शोक मनाता हैजो बीत गई सो बात गईजीवन में वह था एक कुसुमथे उसपर नित्य निछावर तुमवह सूख गया तो सूख गया
पर बोलो सूखे फूलों परकब मधुवन शोर मचाता हैजो बीत गई सो बात गई
कितने प्याले हिल जाते हैंगिर मिट्टी में मिल जाते हैंजो गिरते हैं कब उठतें हैं
मृदु मिटटी के हैं बने हुएमधु घट फूटा ही करते हैंलघु जीवन लेकर आए हैं
वे मधु लूटा ही करते हैंवह कच्चा पीने वाला हैजिसकी ममता घट प्यालों परजो सच्चे मधु से जला हुआ
#7.चल मरदाने
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
एक हमारा देश, हमारा
वेश, हमारी कौम, हमारीमंज़िल, हम किससे भयभीत ।
चल मरदाने, सीना ताने,हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।हम भारत की अमर जवानी,सागर की लहरें लासानी,
गंग-जमुन के निर्मल पानी,
हिमगिरि की ऊंची पेशानी
सबके प्रेरक, रक्षक, मीत ।
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
जग के पथ पर जो न रुकेगा,
जो न झुकेगा, जो न मुडेगा,
उसका जीवन, उसकी जीत ।चल मरदाने, सीना ताने,हाथ हिलाते, पांव बढाते,मन मुस्काते, गाते गीत ।
– हरिवंश राय बच्चन –
#8.साथी सब कुछ सहना होगा
मानव पर जगती का शासन,जगती पर संसृति का बंधन,
संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधों में रहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!हम क्या हैं जगती के सर में!जगती क्या, संसृति सागर में!एक प्रबल धारा में हमको लघु तिनके-सा बहना होगा!साथी, सब कुछ सहना होगा!आओ, अपनी लघुता जानें,अपनी निर्बलता पहचानें,जैसे जग रहता आया है उसी तरह से रहना होगा!साथी, सब कुछ सहना होगा !
#9.संवेदना
क्या करूँ ?
मैं दुःखी जब-जब हुआसंवेदना तुमने दिखाई,
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा
हो उठा है बोझ भारी
क्या करूँ संवेदना ले कर तुम्हारी ?क्या करूँ ?
एक भी उच्छ्वास मेरा
कौन है जो दूसरे कोदुःख अपना दे सकेगा?कौन है जो दूसरे सेदुःख उसका ले सकेगा?क्यों हमारे बीच धोखेका रहे व्यापार जारी?क्या करूँ संवेदना ले कर तुम्हारी?
क्या करूँ?
हर पथिक जिस पर अकेला,
वेदना जो है दिखाता,
वेदना से मुक्ति का निजहर्ष केवल वह छिपाता,तुम दुःखी हो तो सुखी मैंविश्व का अभिशाप भारी!क्या करूँ संवेदना ले कर तुम्हारी?क्या करूँ?
– हरिवंश राय बच्चन –
#10.दिन जल्दी जल्दी ढलता है
मंजिल भी तो है दूर नहीं –
#11.था तुम्हे मैंने रुलाया
था तुम्हें मैंने रुलाया!
स्नेह का वह कण तरल था,मधु न था, न सुधा-गरल था,एक क्षण को भी, सरलते, क्यों समझ तुमको न पाया!था तुम्हें मैंने रुलाया!बूँद कल की आज सागर,सोचता हूँ बैठ तट पर –
#12.क्षण भर को क्यों प्यार किया था
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
‘यह अधिकार कहाँ से लाया!’और न कुछ मैं कहने पाया –मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था!क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
#13.आज तुम मेरे लिए हो
आज कुंतल छाँह मुझ पर तुम किए होप्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।रात मेरी, रात का श्रृंगार मेरा,आज आधे विश्व से अभिसार मेरा,
वह सुरा के रूप से मोहे भला क्या,वह सुधा के स्वाद से जाए छला क्या,जो तुम्हारे होंठ का मधु-विष पिए हो
मैं अमर अब, मत कहो केवल जिए होप्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।
#14.आ रही रवि की सवारी
आ रही रवि की सवारी।नव-किरण का रथ सजा है,कलि-कुसुम से पथ सजा है,
बादलों-से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक धारी।
आ रही रवि की सवारी।विहग, बंदी और चारण,गा रही है कीर्ति-गायन,
रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी।आ रही रवि की सवारी।
#15.मधुशाला
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।
Video of Harivansh rai bachchan poems
Conclusion
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