Golmej Sammelan In हिंदी | गोलमेज सम्मलेन | Round Table Conference (1931-1932)
आज़ादी की लड़ाई के दौरान अंग्रेजों ने तीन golmej sammelan आयोजित करवाए थे| गोलमेज सम्मलेन (round table conference) का अपना उद्देश्य था और इन golmej sammelan ने देश की राजनीति को अपने तरीके से प्रभावित किया था|
गोलमेज सम्मेलनों का आधुनिक भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है| इसलिए आज हम इसी के बारे में विस्तार से बात करेंगे|
Contents
- 1 Golmej Sammelan in Hindi
- 2 प्रथम गोलमेज सम्मलेन | First Round Table Conferences In Hindi
- 3 द्वितीय गोलमेज सम्मलेन | Second round table conference
- 4 तृतीय गोलमेज सम्मलेन | Third Round Table Conference
- 5 गोलमेज सम्मेलन (1930-1932)
- 6 परिचय:
- 7 गोलमेज सम्मेलनों की सूची और विवरण
- 8 पहला गोलमेज सम्मेलन (1930)
- 9 दूसरा गोलमेज सम्मेलन (1931)
- 10 तीसरा गोलमेज सम्मेलन (1932)
- 11 गोलमेज सम्मेलनों का परिणाम
- 12 निष्कर्ष
Golmej Sammelan in Hindi
जिस समय देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन पूरे जोरो पर था, और गाँधी जी ने नमक यात्रा की थी, उस समय ब्रिटिश सरकार को अंदेशा हो गया था की भारत पर अब उनका निरंकुश शासन नहीं चल सकेगा| उन्हें अहसास हो गया था कि अब भारतीयों को भी सरकार में हिस्सा देना पड़ेगा|
इसलिए ब्रिटिश सरकार ने लन्दन में गोलमेज सम्मेलनों को आयोजित करने का फैसला किया| जिसमे भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को बुलाया गया|
इन गोलमेज सम्मेलनों या Round Table Conferences में साइमन कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर भारत की राजनीतिक समस्याओं पर चर्चा करने के लिए अंग्रेज सरकार ने 1931 से 1932 के बीच तीन गोलमेज सम्मेलन बुलाये|
अब एक-एक करके तीनो सम्मेलनों के बारे में बात करते है|
प्रथम गोलमेज सम्मलेन | First Round Table Conferences In Hindi
1st गोलमेज सम्मेलन 12 नवंबर 1930 से 13 जनवरी 1931 तक लंदन में आयोजित किया था| यह ऐसी पहली वार्ता थी जिसमे ब्रिटिश शासकों द्वारा भारतीयों को भारतीयों को बराबरी का दर्जा दिया गया|
इस सम्मलेन का उद्घाटन ब्रिटेन के सम्राट जॉर्ज पंचम ने किया था | और इसकी अध्यक्षता ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैक्डोनाल्ड ने किया था|
इस सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले 89 लोगो में 13 ब्रिटिश राजनितिक दलों के तथा शेष 76 भारतीय थे| इस सम्मेलन में कांग्रेस ने हिस्सा नहीं लिया था|
हिस्सा लेने वाले नेताओं में तेज बहादुर सप्रू, श्रीनिवास शास्त्री, मुहम्मद अली, मुहम्मद शफी, आगा खान, फजलूल हक, मुहम्मद अली जिन्ना, होमी मोदी, एम.आर.जयकर, मुंजे, भीमराव अंबेडकर, सुंदर सिंह मजीठिया आदि थे|
ब्रिटिश सरकार प्रथम गोलमेज सम्मेलन से समझ गई कि बिना कांग्रेस के सहयोग के कोई फैसला संभव नहीं है। वायसराय लार्ड इरविन और महात्मा गांधी के बीच 5 मार्च 1931 को गांधी इरविन समझौता सम्पन्न हुआ।
यह समझौता इसलिये महत्वपूर्ण था क्योंकि पहली बार ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के साथ समानता के स्तर पर समझौता किया।
गांधी इरविन समझौता | Gandhi Irwin pact in Hindi
महात्मा गांधी और वायसराय इरविन के बीच 5 मार्च, 1931 को एक समझौता हुआ जिसे गांधी इरविन समझौता कहते है|
इस समझौते के कारण कांग्रेस ने अपनी तरफ से सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil disobedience movement) समाप्त करने की घोषणा की| और गांधी जी द्वितीय गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने के लिये तैयार हो गए|
गांधी इरविन समझौते को दिल्ली समझौता भी कहा जाता है|
द्वितीय गोलमेज सम्मलेन | Second round table conference
यह गोलमेज सम्मलेन लंदन में 7 सितम्बर 1931 से 1 दिसंबर 1931 में हुआ था| 2nd Golmej Sammelan के समय लार्ड वेलिंगटन भारत का वॉयसराय था| इस सम्मेलन में कांग्रेस की तरफ से केवल गाँधी जी ने भाग लिया था|
इस सम्मलेन में साम्प्रदायिक समस्या पर विवाद हुआ था| भीमराव आंबेडकर अलग निर्वाचन पर अड़े हुए थे| जिसे गाँधी जी ने अस्वीकार कर दिया था| इस समस्या के कारण यह सम्मलेन असफल हो गया था|
बाद में गाँधी जी निराश होकर 28 दिसम्बर को बम्बई वापस आ गए| जब उन्होंने वायसराय से मिलना चाहा तो उसने मिलने से इंकार कर दिया| इससे मजबूर होकर गाँधी जी दोबारा सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया|
2nd गोलमेज सम्मेलन में एनी बेसेंट और मदन मोहन मालवीय ने भी भाग लिया था|
सांप्रदायिक पंचाट | पूना पैक्ट
16 अगस्त 1932 विभिन्न सम्प्रदायों के प्रतिनिधित्व के विषय पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने एक पंचाट जिसे communal award कहा गया है, जारी किया| इस पंचाट में पृथक निर्वाचन पद्धति को न केवल मुसलमानो के लिए बल्कि दलित वर्गों के लिए भी लागू कर दिया गया|
इसके अंतर्गत मुसलमान, ईसाई, तथा सिख आंग्ल भारतीयों लिए पृथक निर्वाचन पद्धति की सुविधा प्रदान की गई थी|
दलित वर्ग को पृथक निर्वाचक मंडल की सुविधा दिए जाने के विरोध में गांधी जी ने 20 सितम्बर 1932 को जेल में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया|
मदन मोहन मालवीय, डॉ राजेंद्र प्रसाद, पुरुषोत्तमदास, एवं राजगोपालाचारी के प्रयासों से 5 दिन उपरांत डॉ अम्बेडकर और गाँधी जी के बीच पूना समझौता संपन्न हुआ|
पूना समझौता या Puna Pact के अनुसार दलितों के लिए दलितों के लिए अलग निर्वाचन व्यवस्था समाप्त हो गई|
तृतीय गोलमेज सम्मलेन | Third Round Table Conference
17 नवंबर 1932 से 24 दिसंबर 1932 तक 3rd Golmej Sammelan आरम्भ हुआ| इसमें मात्र 46 प्रतिनिधि शामिल हुए थे| तथा इस सम्मलेन में कांग्रेस ने भाग नहीं लिया|
इस सम्मेलन में भारत सरकार अधिनियम 1935 हेतु योजना को ठोस रूप प्रदान करने का प्रारूप पेश किया गया|
ये तीनो सम्मलेन अलग-अलग नहीं थे बल्कि एक ही सम्मलेन था जो तीन सत्रों में संपन्न हुआ था|
किसने सभी तीन गोलमेज सम्मेलनों में भाग लिया था?
B. R. Ambedkar ने सभी तीन गोलमेज सम्मेलनों में भाग लिया था|
गोलमेज सम्मेलन (1930-1932)
परिचय:
गोलमेज सम्मेलन (Round Table Conference) ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय संवैधानिक सुधारों पर चर्चा करने के लिए लंदन में आयोजित किए गए थे। ये सम्मेलन तीन चरणों (1930-1932) में हुए और इनका उद्देश्य भारत को एक नई राजनीतिक संरचना प्रदान करना था।
इन सम्मेलनों का मुख्य उद्देश्य “भारतीयों को शासन में अधिक भागीदारी” देना था।
गोलमेज सम्मेलनों की सूची और विवरण
गोलमेज सम्मेलन | वर्ष | मुख्य विशेषताएँ |
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पहला गोलमेज सम्मेलन | 12 नवंबर 1930 – 19 जनवरी 1931 | कांग्रेस ने भाग नहीं लिया, मुस्लिम लीग और अन्य दलों ने भाग लिया। |
दूसरा गोलमेज सम्मेलन | 7 सितंबर 1931 – 1 दिसंबर 1931 | महात्मा गांधी ने कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया। |
तीसरा गोलमेज सम्मेलन | 17 नवंबर 1932 – 24 दिसंबर 1932 | कांग्रेस ने भाग नहीं लिया, लेकिन कुछ अन्य भारतीय नेता उपस्थित रहे। |
पहला गोलमेज सम्मेलन (1930)
स्थान: लंदन (12 नवंबर 1930 – 19 जनवरी 1931)
मुख्य उद्देश्य: भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा
कांग्रेस ने भाग नहीं लिया क्योंकि सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930) चल रहा था।
मुस्लिम लीग, दलित वर्ग, सिख, और अन्य समूहों ने भाग लिया।
ब्रिटिश सरकार ने भारत को डोमिनियन स्टेटस (स्वायत्तता) देने की बात की, लेकिन कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया।
दूसरा गोलमेज सम्मेलन (1931)
स्थान: लंदन (7 सितंबर 1931 – 1 दिसंबर 1931)
महात्मा गांधी ने कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया।
गांधी-इरविन समझौते (मार्च 1931) के तहत महात्मा गांधी इस सम्मेलन में शामिल हुए।
गांधी जी ने भारत को पूर्ण स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता) देने की मांग की।
डॉ. भीमराव अंबेडकर और डॉ. शुद्धानंद ने दलितों के लिए विशेष अधिकारों की मांग की।
ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस के बीच सहमति नहीं बन पाई।
तीसरा गोलमेज सम्मेलन (1932)
स्थान: लंदन (17 नवंबर 1932 – 24 दिसंबर 1932)
कांग्रेस ने भाग नहीं लिया क्योंकि गांधी जी जेल में थे।
इस सम्मेलन का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा।
बाद में 1935 में भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act, 1935) बनाया गया।
गोलमेज सम्मेलनों का परिणाम
भारत सरकार अधिनियम 1935 पारित हुआ।
सविनय अवज्ञा आंदोलन तेज हुआ।
अंबेडकर और गांधी के बीच “पूना पैक्ट” (1932) हुआ।
भारत को डोमिनियन स्टेटस नहीं मिला, लेकिन प्रांतीय स्वशासन की शुरुआत हुई।
निष्कर्ष
गोलमेज सम्मेलनों से भारत को तत्काल स्वतंत्रता तो नहीं मिली, लेकिन भारत सरकार अधिनियम 1935 के रूप में संवैधानिक सुधारों की नींव रखी गई। कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार के बीच मतभेद बने रहे, जिससे भारत में स्वतंत्रता संग्राम और तेज हो गया।