सामाजिक न्याय क्या है? Social Justice in Hindi

सामाजिक न्याय (social justice) की अवधारणा ऐसे विचार पर टिकी है जिसके अनुसार सभी मनुष्य समान है| सभी को समान अवसर मिलना चाहिए| किसी के साथ सामाजिक या धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए| सामाजिक न्याय क्या है? या सामाजिक न्याय से क्या समझते हैं? Polity का यह टॉपिक UPSC mains जैसी कई परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है|

सामाजिक न्याय क्या है? Social Justice in Hindi

सामाजिक न्याय से क्या समझते हैं: सामाजिक न्याय एक जटिल अवधारणा है| इससे पहले आपको न्याय के बारे में जानना चाहिए|

विश्व की सभी सभ्यताओं और संस्कृतियों ने न्याय की व्याख्या अलग-अलग तरीके से की है| प्राचीन भारत में न्याय को धर्म के साथ जोड़ कर देखा गया है| और धर्म की स्थापना राजा का कर्तव्य माना गया है|

चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस और यूनानी दार्शनिक प्लेटो के भी न्याय को लेकर अपने-अपने तर्क हैं| प्लेटो की पुस्तक ‘द रिपब्लिक’ में न्याय को लेकर चर्चा की गई है|

समान लोगों को समान अवसर

जर्मन दार्शनिक इमैनुअल कांट के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा होती है| उनमे से प्रत्येक अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्यों की पूर्ति के लिए समान अवसर के अधिकारी होते हैं|

आधुनिक समाज में यह आसान नहीं है कि हर व्यक्ति को उसके अधिकार कैसे दिए जाएँ? इस सम्बन्ध में कई सिद्धांत पेश किये गए है| जैसे- समकक्षों के साथ समानता के बरताव का सिद्धांत

इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य होने के नाते सभी मनुष्यों में कुछ चारित्रिक समानताएं होती है| इसलिए वे सामान अधिकार एवं बर्ताव के अधिकारी है| इन अधिकारों में जीवन, स्वतंत्रता, और संपत्ति का अधिकार जैसे नागरिक अधिकार शामिल हैं|

लोगों के साथ जाति, धर्म, नस्ल या लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए| भारत में जातिगत भेदभाव रोकने के लिए ही एससी/एसटी एक्ट लागू किया गया है|

समानुपातिक न्याय

कई परिस्थितियों में हर एक के साथ समान बर्ताव न्यायोचित नहीं होता है| जैसे कि एक स्कूल  सभी छात्रों को एक ही परीक्षा देने को कहा जाए| चाहे वो जिस भी कक्षा में हों|

इस स्थिति में एक स्कूल के सभी छात्रों को समान बर्ताव के तहत समान परीक्षा देनी होगी, ये तर्क सही नहीं है|

अब आप लोगों को समझ में आ गया होगा कि समानता के सिद्धांत और समानुपातिक सिद्धांत के बीच सामंजस्य होना चाहिए|

विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल

कुछ खास मामलों में असमान और विशेष सहायता दी जा सकती है| न्याय के इस तीसरे सिद्धांत को आप विकलांगता से जोड़ कर देख सकते हैं|

विश्व सामाजिक न्याय दिवस | World Day of Social Justice in हिंदी

किसी भी सभ्य समाज/राज्य के लिए न्याय बेहद अहम होता है| न्याय समाज को कई बुराइयों और गैर-सामाजिक तत्वों से दूर रखने के साथ लोगों के नैतिक और नागरिक अधिकारों की रक्षा भी करता है| समाज में फैली असमानता और भेदभाव से सामाजिक न्याय की मांग और तेज हो जाती है|

संयुक्त राष्ट्र ने 20 फरवरी को विश्व सामाजिक न्याय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है| सन 2009 से इस दिवस को पूरे विश्व में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों द्वारा मनाया जाता है|

सामाजिक न्याय विभाग

कल्याण मंत्रालय का नाम मई, 1998 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में बदल दिया गया था।

सामाजिक न्याय के प्रश्न उत्तर

सामाजिक न्याय का क्या अर्थ है?

सामाजिक न्याय (social justice) की अवधारणा ऐसे विचार पर टिकी है जिसके अनुसार सभी मनुष्य समान है| सभी को समान अवसर मिलना चाहिए| किसी के साथ सामाजिक या धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए|

सामाजिक न्याय की आवश्यकता क्यों है?

किसी भी सभ्य समाज/राज्य के लिए न्याय बेहद अहम होता है| न्याय समाज को कई बुराइयों और गैर-सामाजिक तत्वों से दूर रखने के साथ लोगों के नैतिक और नागरिक अधिकारों की रक्षा भी करता है|

प्लेटो ने अपने न्याय सिद्धांत में समाज की कितनी श्रेणियां बताइए?

प्लेटो ने अपने न्याय के सिद्धांत में समाज की जो श्रेणियां दी हैं। संरक्षक, जो दार्शनिक हैं, शहर पर शासन करते हैं; सहायक सैनिक ऐसे सैनिक हैं जो इसका बचाव करते हैं; और सबसे निचले वर्ग में उत्पादक (किसान, कारीगर, आदि) शामिल हैं।

प्राचीन भारत में न्याय की व्याख्या कैसे की गई है?

प्राचीन भारत में न्याय को धर्म के साथ जोड़ कर देखा गया है| और धर्म की स्थापना राजा का कर्तव्य माना गया है|

हर एक के साथ समान बर्ताव कब न्यायोचित नहीं होता है

सबके साथ समान बर्ताव तब न्यायोचित नहीं होता है, जब सभी व्यक्ति किसी विशेष अवस्था में समान नहीं हों| जैसे अलग अलग कक्षाओं के छात्रों से समानता के नाम पर एक ही परीक्षा नहीं ली जा सकती है|

सामाजिक न्याय (Social Justice) क्या है?

 परिचय:

सामाजिक न्याय (Social Justice) का अर्थ है सभी व्यक्तियों को समान अवसर, अधिकार, स्वतंत्रता और संसाधन उपलब्ध कराना, बिना किसी भेदभाव के। यह एक ऐसा सिद्धांत है जो समानता, स्वतंत्रता और मानवाधिकारों को सुनिश्चित करता है।

संविधान में सामाजिक न्याय का आधार – भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 17, 38, 39, 46 आदि सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करते हैं।

 सामाजिक न्याय के प्रमुख तत्व:

समानता (Equality) – जाति, धर्म, लिंग, भाषा आदि के आधार पर किसी के साथ भेदभाव न हो।
स्वतंत्रता (Freedom) – सभी को अपनी पसंद का जीवन जीने की स्वतंत्रता हो।
अवसरों की समानता (Equal Opportunity) – सभी को शिक्षा, रोजगार और विकास के समान अवसर मिलने चाहिए।
मूलभूत अधिकार (Fundamental Rights) – संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों की रक्षा हो।
आरक्षण और संरक्षण (Reservation & Protection) – पिछड़े और वंचित वर्गों को न्याय मिले।

 भारत में सामाजिक न्याय के प्रयास:

अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण।
महिलाओं और कमजोर वर्गों के लिए विशेष कानून।
बाल श्रम, दहेज, मानव तस्करी जैसी प्रथाओं पर रोक।
न्यायपालिका और मानवाधिकार आयोग का गठन।
शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का प्रसार।

 सामाजिक न्याय के लिए भारतीय संविधान में प्रावधान:

अनुच्छेद 14 – कानून के समक्ष समानता।
अनुच्छेद 15 – धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव निषिद्ध।
अनुच्छेद 16 – सरकारी नौकरियों में अवसर की समानता।
अनुच्छेद 17 – अस्पृश्यता का उन्मूलन।
अनुच्छेद 39 – समान वेतन, बच्चों और महिलाओं के संरक्षण का प्रावधान।
अनुच्छेद 46 – अनुसूचित जाति/जनजाति और अन्य कमजोर वर्गों की सुरक्षा।

 सामाजिक न्याय का महत्व:

गरीबी और असमानता को कम करता है।
जातिवाद, लिंग भेद और भेदभाव को समाप्त करता है।
लोकतंत्र और मानवाधिकारों को मजबूत करता है।
समाज में शांति और समरसता बनाए रखता है।

 निष्कर्ष:

सामाजिक न्याय एक समतामूलक समाज की नींव है, जहाँ सभी को समान अवसर और अधिकार प्राप्त हों। भारत में यह संविधान का मूल तत्व है, जिसके माध्यम से सरकार विभिन्न योजनाओं और कानूनों के जरिए सामाजिक न्याय को लागू करने का प्रयास करती है।

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