अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों (SC & ST) के लोगों पर सैकड़ों सालों से अत्याचार और छुआछूत जैसे भेदभाव किये जातें रहें हैं| समाज में व्याप्त इस कुरीतियों को समाप्त करने के मकसद से अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम, 1989 या sc st Act (in Hindi) बनाया गया था|
1955 के ‘प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स एक्ट’ के बावजूद दशकों तक न तो छुआछूत का अंत हुआ और न ही हरिजनों पर अत्याचार रुका| यह एक तरह से इन लोगों के साथ भारतीय संविधान द्वारा किए गए समानता और स्वतंत्रता के वादे का उल्लंघन था|
SC ST Act के माध्यम से इन लोगों को समाज में उचित दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किये गए थे| यह अधिनियम 11 सितम्बर 1989 को बना था| और इसे 30 जनवरी 1990 को लागु किया गया था| इस एक्ट को हरिजन एक्ट के नाम से भी जाना जाता है|
एससी-एसटी एक्ट 1989 में यह प्रावधान किया गया कि अत्याचार से पीड़ित लोगों को पर्याप्त सुविधाएं और कानूनी सहायता दी जाए, जिससे उन्हें न्याय मिले|
एससी-एसटी एक्ट 1989 में यह प्रावधान किया गया कि अत्याचार से पीड़ित लोगों को पर्याप्त सुविधाएं और कानूनी सहायता दी जाए, जिससे उन्हें न्याय मिले| इसके साथ ही पीड़ितों के आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था की जाए| एक सभ्य समाज सामाजिक न्याय की अवधारणा को नज़र अंदाज नहीं कर सकता है|
चलिए अब SC ST Act से जुड़ी महत्वपूर्ण धाराओं के बारे में बात करतें है| sc st act in hindi pdf download करने के लिए आप हमारा टेलीग्राम चैनल जरूर ज्वाइन करें| जिसका लिंक आर्टिकल में नीचे दिया गया है|
धारा 1.
- इस अधिनियम का पूरा नाम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 है|
- यह सारे भारत में लागू होता है|
धारा 2.
इसमें अधिनियम की महत्वपूर्ण परिभाषाएं निहित है|
- SC और ST – sc और st के वही अर्थ हैं संविधन के अनुच्छेद 366 के खंड 24 और 25 में हैं|
- पीड़ित- SC और ST एक्ट की धारा 2 (1) (c) अधीन किसी अपराध के होने के परिणाम स्वरुप शरीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक या आर्थिक हानि की क्षति उठाने वाला पीड़ित (Victim) कहलाता है|
- साक्षी- ऐसा व्यक्ति जो अपराध की जाँच से जुड़े तथ्यों या परिस्थितियों (साक्ष्य) से अवगत हो, उसे साक्षी (Witness) कहा जाता है| साक्ष्य (Evidence) से सम्बंधित जानकारी के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम आर्टिकल पर जाएं|
SC ST एक्ट में सजा
sc st एक्ट में सजा के प्रावधान कई धाराओं में किये गए हैं| जिनके बारे में हम एक-एक करके जानेंगे|
SC ST Act धारा 3: अत्याचार के अपराधों के लिए दंड
- कोई भी व्यक्ति जो sc st समूह का सदस्य नहीं है यदि;
- अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को अखाद्य या घृणात्मक पदार्थ खाने को मजबूर करता है,
- अनुसूचित जाति या जनजाति के पड़ोस में मल-मूत्र, कूड़ा, पशु शव या कोई घृणाजनक पदार्थ इकठ्ठा करेगा,
- अनुसूचित जाति या जनजाति के किसी सदस्य के साथ कोई शारीरिक रूप से कोई कृत्य करवाएगा, जैसे नंगा करके या चेहरे को पोत का घुमायेगा,
- आर्थिक रूप से बहिस्कार करेगा या धमकी देगा,
उस व्यक्ति को कम से कम 6 महीने से अधिकतम 5 वर्ष तक की सज़ा और जुर्माना हो सकता है|
- कोई भी व्यक्ति जो sc st समूह का सदस्य नहीं है यदि;
- किसी sc st समूह के व्यक्ति को फांसी दिलाने के इरादे से गलत सबूत देता है तो वह व्यक्ति आजीवन कारावास और जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है|
- यदि इन सबूतों के आधार पर दोष सिद्ध हो जाता है और sc st समूह के व्यक्ति को फांसी हो जाती है तो गलत सबूत देने वाले व्यक्ति को फांसी दी जा सकती है|
- यदि आग या विस्फोटक पदार्थ से sc st समूह के व्यक्ति की संपत्ति को क्षति पहुंचाता है तो उसे 6 महीने से 7 वर्ष का का कारावास तथा जुर्माना हो सकता है|
- यदि आग या विस्फोटक पदार्थ से sc st समूह के व्यक्ति के पूजा स्थल या मकान या किसी अन्य संरचना को नष्ट करता है तो उसे आजीवन कारावास और जुर्माना दोनों हो सकता है|
SC ST Act धारा 4: कर्तव्य उपेक्षा के लिए दंड
कोई भी लोक सेवक जो अनुसूचित जाति और जनजाति का सदस्य नहीं है, नियमों के अधीन अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करता है| उसको 6 माह से 1 साल तक की जेल हो सकती है|
SC ST Act धारा 10:
यदि विशेष न्यायालय को पुलिस रिपोर्ट या किसी अन्य तरीके से यह पक्का पता लगता है, कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति व जनजाति क्षेत्रों में अपराध करेगा| तो न्यायालय लिखित आदेश देगा कि ऐसा व्यक्ति उस क्षेत्र की सीमा से 3 साल के लिए हट जाए|
धारा 13
वह व्यक्ति जो धारा 10 के अधीन विशेष न्यायालय के आदेश उलंघन करेगा, उसे एक वर्ष तक का कारावास तथा जुर्माना दोनों हो सकता है|
SC ST Act धारा 14: विशेष न्यायालय
शीघ्र विचार करने लिए राज्य सरकार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सहमति से एक या अधिक जिलों में एक विशेष न्यायालय स्थापित करेगी|
धारा 15: विशेष लोक अभियोजक
राज्य सरकार विशेष न्यायालय में एक लोक अभियोजक की नियुक्ति करेगी| लोक अभियोजक ऐसे अधिवक्ता होंगे जिन्होंने कम से कम 7 वर्षों का अनुभव प्राप्त किया हो|
SC ST Act में पीड़ित और साक्षी के अधिकार
SC ST एक्ट की धारा 15 A में पीड़ित और साक्षी के आधिकारो के बार में बताया गया है|
- किसी भी प्रकार की हिंसा से पीड़ित, उसके आश्रितों और साक्षियों के संरक्षण की व्यवस्था राज्य का कर्तव्य है|
- पीड़ित से निष्पक्षता, और सम्मान के साथ व्यवहार होना चाहिए|
- विशेष न्यायालय के दायित्व
- जांच और सुनवाई के दौरान यात्रा तथा भरण पोषण व्यय
- जांच और सुनवाई के दौरान सामाजिक और आर्थिक पुनर्वास
- इस अधिनियम (sc st act in hindi) के अधीन अपराधों से संबंधित सभी कार्यवाही की वीडियोग्राफी की जाएगी|
- FIR नि:शुल्क प्रति प्रदान की जाएगी|
- अत्याचार पीड़ितों या उनके आश्रितों का गैर सरकारी संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अधिवक्ताओं से सहायता लेने का अधिकार होगा|
क्यों है विवाद: एससी/एसटी एक्ट 2020 संशोधन pdf
पहले इस एक्ट के तहत जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने पर तुरंत FIR दर्ज होता था| इन मामलों की जांच का अधिकार इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अधिकारी के पास भी था| इस एक्ट के तहत केस दर्ज होने के बाद तुरंत गिरफ्तारी का भी प्रावधान था| ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत भी नहीं मिलती थी|
सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि इस एक्ट का गलत इस्तेमाल हो रहा है| कोर्ट ने हाल ही में कहा था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी बिना सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के नहीं हो सकती है|
इसके अलावा जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं है, उनकी गिरफ्तारी के पहले जांच की जाएगी| और दोषी पाए जाने पर एसएसपी की इजाजत से ही गिरफ़्तारी हो सकेगी| इसके आलावा कोई भी शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा|
देशभर में विरोध प्रदर्शन के बाद केंद्र सरकार ने संसद में बिल लाकर कोर्ट के आदेश को बदला था, फैसले की समीक्षा की मांग की थी|